Hindi kahaniyan अश्रु बने मोती

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Hindi kahaniyan हरिहर नाथ त्रिवेदी

  • Hindi kahaniyan गांव में काफी धूम-धाम थी आज रूपा का विवाह जो था। पारसपुर गाँव की जान थी रूपा। घर ही नहीं बल्कि पूरे गाँव की चहेती थी, रूपा आखिर हो भी क्यों नहीं, किसी के भी दुःख में दुखी होना और सुख में खुश होना उसकी फितरत में था। रूपा कहाँ हो बेटी! मनु सिंह ने अपनी बेटी को बुलाकर पास बैठाया और कहा- बेटी आज तुम्हारा विवाह है, तुम्हारी बचपन की सारी अठखेलियाँ आज हमारे आँखों के सामने घूम रही हैै। आज तुम्हें अपने असली घर जाना है, जो सभी बेटियों के भाग्य में होता है। आज तक तुम मेरी जिम्मेवारी थी पर अब तुम्हें खुद सारी जिम्मेवारी उठानी पड़ेगी। आज तुम अपना एक नया संसार बसाने जा रही हो। बस इतना ध्यान रखना कि तुम्हारे साथ तुम्हारे पिता की पगड़ी जा रही है इसे संभालना अब तुम्हारे हाथो में है और इतना कहते-कहते उनकी आँखों से आँसू की धार बहने लगी। रूपा भी अपने पिता के गले लगकर रोने लगी। रूपा की माँ ने उन दोनों को समझाया और रूपा को उसके पिता से अलग करके ले गई।
  • Hindi kahaniyan बारात आ चुकी थी। रूपा के पिताजी बारातियों के आव-भगत में लगे हुए थे। गाँव के नवजवान भी बारातियों के स्वागत में अपनी भूमिका निभा रहे थे। आव-भगत होने के बाद रूपा का विवाह संपन्न हुआ। अब बिदाई की बारी आई मनु सिंह ने अपनी लाड़ली पुत्री की विदाई की।Hindi kahaniyan
  • रूपा के ससुराल पहुँचने पर उसकी जेठानी ने आरती उतार कर स्वागत किया। रूपा अपने पति राकेश के साथ जीवन के नये चरण में प्रवेश कर चुकी थी। परंतु उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ अब क्या होनेवाला है? सुहागरात के दिन रूपा अपने पति का इन्तजार अपने कमरे में कर रही थी, परंतु सारी रात बीत गई राकेश नहीं आया। इन्तजार करते-करते न जाने कब रूपा की आँख लग गई। सुबह जब उसकी जेठानी ने आकर उसे जगाया तो वह हड़बड़ाकर उठी। जेठानी ने कड़े शब्दों में कहा की क्योंरी महारानी अभीतक बिस्तर तोड़ रही हो, तुम्हारे बाप ने साथ में नौकर भेजा है क्या जो तुम्हारा सारा काम करेगा, घर का काम कौन करेगा? जेठानी की इस रूप की कल्पना भी कभी रूपा ने नहीं की थी। रूपा ने सहमे भाव से बिस्तर से उठकर घर के कामों में लग गई। वह अपने दिल की बात कहती तो किससे कहती। उसका पति उससे दूर-दूर ही रहता था। रूपा को अब आये दिन दुःखों का सामना करना पड़ रहा था। राकेश कभी भी भर मुँह उससे बात नहीं करता था। एक रात जब रूपा सोई हुई थी तब राकेश शराब के नशे में धुत्त घर आया और रूपा जो सोई हुई थी उसे जगाकर कहा- क्यों हमारे साथ अन्याय किया अपने यार के साथ ही क्यों नहीं भाग गई? हमारे जीवन में जहर घोलने के लिये क्यों आई? रूपा को कुछ समझ में नहीं आया उसने जैसे ही कुछ कहने के लिए जुबान खोलना चाहा एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर लगा और वह मुर्छित होकर गिर पड़ी। Hindi kahaniyan
  • दिन बीतते गए रूपा दिनो-दिन अत्याचार को सहते-सहते कमजोर हो चुकी थी। एक दिन उसके पिताजी उससे मिलने के लिए आए तो उसके जेठ और जेठानी ने उसे रूपा को कमरे में बंद कर दिया और उसके पिता से कहा कि राकेश और रूपा तो शहर में रह रहे हैं। वे लोग तो विवाह के कुछ हफ्ते बाद ही शहर चले गए थे। वहाँ राकेश ने अपना नया धंधा शुरू किया है। रूपा के पिता ने कहा कि बहुत दिनों से कोई समाचार नहीं मिला था और बेटी की बहुत याद आ रही थी तो मिलने चला आया। फिर उसके पिता वापस चले गए। रूपा कमरे में बैठी रोती रही।
  • एक रात रूपा अपने कमरे में अकेली सोई हुई थी तो राकेश का बड़ा भाई मुकेश उसके कमरे में आया और उसके साथ जबरदस्ती करने लगा। रूपा ने चिल्लाना शुरू किया तो घर के लोग वहाँ आ गए। तब मुकेश घबरा गया और राकेश के सामने बनने का दिखावा करते हुए बताया कि इस बदचलन औरत ने मुझे जबरदस्ती इस कमरे में बुलाया और हमारे साथ गलत काम करने की इच्छा जाहिर करने लगी। जब मैने इसे समझाया कि यह पाप है तो इसने कहा कि अगर मैं इसके कहे अनुसार नहीं किया तो यह पूरे घर के सामने मेरी इज्जत का फलूदा बना देगी और इसने हल्ला करना शुरू कर दिया। रूपा ने रो-रोकर अपनी सफाई में कहना चाहा कि उसके साथ क्या हो रहा है परंतु उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। उसे उसी रात राकेश ने घर से बाहर निकाल दिया।Hindi kahaniyan
  • रूपा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे इतनी रात को वह कहाँ जाए। जाए भी तो कहाँ जाए किस मुँह से वह अपने पिता के घर जाए। पिता के घर जाने पर भी उसके पिता अपनी बेटी पर लगे हुए कलंक को बर्दास्त नहीं कर पाएंगे और वह जीते-जी मर जाएँगे। उसे आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। यही सोच कर उसने गंगापुल से छलांग लगा दी। उसने तो अपनी जीवन लीला समाप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परंतु ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। जब वह गंगापुल से छलांग लगाई तभी एक बूढ़े मछुआरे की नजर उस पर पड़ी। वह बूढ़ा मछुआरा अपनी नाव लेकर उस ओर बढ़ा और रूपा को पानी से बाहर निकाल लाया। रूपा बेहोश हो चुकी थी। बूढ़ा मछुआरा रूपा को अपने घर लेकर आया और अपनी पत्नी को सारी घटना बताई उसकी पत्नी और मछुआरे ने मिलकर रूपा का ध्यान रखा और उसे होश में लाया। मछुआरे की पत्नी ने रूपा से पूछा कि बेटी ऐसी क्या विपदा आन पड़ी थी? जिससे तुम्हंे यह कदम उठाना पड़ा? जीवन जीने का नाम है और यह ईश्वर की अमूल्य देन है इसे समाप्त करने का तुम्हें कोई हक नहीं है। तब रूपा ने अपनी आपबीती उनलोगों को सुनाई। रूपा के आंसू थम नहीं रहे थे। उसने रोते हुए कहा मैं किसके लिए जिन्दा रहूँ। तब मछुआरे की पत्नी ने समझाया कि बेटी तुम इतनी निराश मत हो ईश्वर ने तुम्हें दूसरा जन्म दिया है। शायद तुम्हारे लिए कुछ अच्छा ही सोचा होगा। जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। देखना एक दिन तुम्हारे आँसु मोतियों के शक्ल में नजर आएंेगे इस बूढ़ी औरत की बातों को अच्छी तरह समझ लो और तुम्हें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है अब से हम तुम्हारे माँ-बाप हैं बेटी तुम बिल्कुल चिंता मत करना ईश्वर ने हमंे कोई औलाद नहीं दिया है। इस बुढ़ापे में उसने तुम्हें मेरी बेटी बनाकर भेजा है यही हमारे लिये अमूल्य देन है।Hindi kahaniyan
  • रूपा मछुआरे दंपति के घर उनकी बेटी बनकर रहने लगी। एक रात की बात है ठंढ का मौसम था बूढ़ें मछुआरे की तबियत बहुत खराब थी। गंगा के किनार पर ही उनका एक छोटा सा घर था। उसी में तीनों रहते थे। ठंढ बहुत ज्यादा थी। मछुआरे को ठंढ लग गई थी। रात भर रूपा ने अपने पिता समान मछुआरे की सेवा की। परंतु मछुआरे ने अंत में दम तोड़ दिया। अगल-बगल की मदद से उनलोगों ने मछुआरे का अंतिम संस्कार किया। अब मछुआरे की पत्नी और रूपा ही रह गए थे घर में। मछुआरे की मौत के बाद उनके घर का रोजगार भी समाप्त हो चुका था। अब दयनीय स्थिति थी। तब रूपा ने मछुआरन से कहा माँ मै बाहर जाकर कोई काम ढूढ़ती हूँ नहीं तो ऐसे कितने दिनों तक चलेगा। मैं पढ़ी-लिखी भी हूँ। मछुआरन ने स्थिति को समझते हुए उसे इजाजत दे दी। रूपा शहर की ओर काम ढूंढ़ने गई। उसने कई दफ्तर में काम ढूँढ़े परन्तु नाकामयाबी ही हाथ लगी। शाम हो गई थी रूपा घर की ओर जा रही थी। तभी अचानक एक औरत उसे सड़क पर तड़पती हुई मिली शायद कोई गाड़ी उसे धक्का मारकर भाग गई थी। उस सुनसान सड़क पर कोई नहीं था। तब रूपा दौड़ती हुई वहाँ गई और उसने उस अधेड़ औरत को उठाया उसके सिर से काफी खून निकल रहा था। वह पास से आती एक गाड़ी को हाथ दिया। वह गाड़ी वाला भला आदमी था वह गाड़ी से उतर कर आया और उस अधेड़ महिला को रूपा के मदद से उठाकर गाड़ी में रखा और अस्पताल पहुँचा दिया। अस्पताल पहुँचते ही वहाँ डाॅक्टरों ने उसे घेर लिया और कहा कि अरे यह तो डाॅक्टर नीता है। शाम को ही अस्पताल से निकली थी। डाॅक्टरों ने उसका ईलाज शुरू कर दिया। रात बीत गई डाॅक्टर नीता को होश आया। उसने अपने पास बैठी रूपा को देखा और कहा मैं यहाँ कैसे आई मैं तो घर जा रही थी। हाँ याद आया एक तेजरफ्तार गाड़ी ने आकर मुझे धक्का मार दिया था। तुम कौन हो बेटी उसने रूपा से पूछा तभी वहाँ नर्स आई और उसने सारी घटना उसे बताया कि किस तरह रूपा ने उसे सड़क पर से उठाकर अस्पताल पहुँचाया। रूपा को उसने धन्यवाद दिया और कहा कि बेटी तुम कौन हो, रातभर तुमने हमारी देखभाल की है तुम्हारे घरवाले परेशान हो रहे होंगे। तब रूपा ने उस डाॅक्टर से अपनी आपबीती सुनाई। डाॅक्टर नीता ने कहा तो तुम्हें काम की तलाश है बेटी चिंता मत करो अपने ही अस्पताल में मैं तुम्हें नर्स की नौकरी दिलवा दूँगी। अभी तुम घर जाओ और कल आॅफिस में तुम मुझसे मिलना, यह कहकर उसने कुछ पैसे अपने पर्स से निकाले और रूपा को देते हुए कहा कि- जाओ सबसे पहले तुम अपने लिए नये कपड़े खरीद लेना और कल आॅफिस में मिलो। रूपा ने पैसे लेने से इनकार कर दिया परंतु डाॅक्टर नीता के जिद्द के आगे उसकी एक न चली। फिर रूपा बाजार से कपड़ों की खरीदारी की और खाने को कुछ लिया। और चल पड़ी उस मछुआरन माँ के पास।
  • इधर रात बीत चुकी थी मछुआरन चिंता से मरी जा रही थी। पता नहीं क्या हुआ मेरी बच्ची के साथ, इस संसार में भेड़ियों की कमी नहीं है। फिर उसने सोचा की मुझ अभागिन के साथ वह क्या रहती, हो सकता है कि उसने अपना नया रास्ता तलाश लिया हो। यही सोचते-सोचते रात बीत गई और सुबह जाकर उसकी आँख लगी। तभी अचानक रूपा की आवाज ने उसे जगाया। माँ-माँ तुम कहाँ हो। उसने सारी घटना की जानकारी दी और साथ लाये खाने को मछुआरन के सामने रखा। तब जाकर मछुआरन के जान में जान आया। वह उसे देखकर रोने लगी और कहने लगी बेटी तुम नहीं आई तो मैने तो यह सोच लिया था कि भगवान ने मेरे पति को मुझसे अलग कर दिया एक बेटी भी दी तो उसे भी छीन लिया। मैंने तो तुम्हारे आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। तब रूपा ने उसे गले लगाकर कहा- माँ तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो, मैंने तुम्हारे पेट से नहीं जन्म लिया परन्तु मेरा नया जीवन तुम्हारा ही देन है और इतना कहकर वह मछुआरन के गले लग कर रोने लगी। दोनों एक-दूसरे के गले मिलकर रो रहे थे।Hindi kahaniyan
  • दूसरे दिन रूपा आॅफिस में पहुँची। डाॅक्टर नीता ने उसे बैठाया और उसे काम समझाने लगी। और कहा कि तुम अब अस्पताल के क्वार्टर में ही रहोगी । तुम अपनी मछुआरन माँ को भी यहाँ लाकर रख सकती हो। तब रूपा साम को घर गई और दूसरे दिन ही वो और उसकी मछुआरन माँ अस्पताल के क्वार्टर में आकर रहने लगे। उसे अच्छी तनख्वाह भी मिलना चालू हो गया। रूपा को जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया था।Hindi kahaniyan
  • Hindi kahaniyan एक वर्ष बीत चुका था। अब रूपा नर्स के कार्य में पाराँगत हो गई थी। एक दिन एक एक्सीडेंट केस अस्पताल में आया। डाॅक्टर नीता ने उसका ईलाज चालू किया। रूपा ने जैसे ही उस मरीज को देखा उसके तो पांव के नीचे से जमीन ही खिसक गई। वह और कोई नहीं था उसका पति राकेश था। उसकी हालत बहुत खराब थी। रातभर रूपा ने उसकी सेवा की। सुबह जब राकेश को होश आया तो उसने रूपा को अपने सामने पाया। वह शर्म से उससे आँखें नहीं मिला पा रहा था। उसकी आँखों से आँसू की धार बह रही थी। उसने रूपा से कहा मुझे माफ कर दो, मैं अभागा तुम्हें कोई सुख नहीं दे पाया और तुमने मेरी इतनी सेवा की मेरी जान बचाई। मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हारा मूल्य नहीं समझ पाया। तुम जब से हमारे घर में आई दुःख ही दुःख दिये हमने। तुम्हारी बातों पर विश्वास न करने की सजा मुझे मिली। जिस समय तुम्हें घर से निकाला गया उस समय मैं भी तुम्हें ही गलत समझ रहा था। परंतु मेरी आँख तब खुली जब भाभी को भैया से कहते सुना कि रास्ते का एक काँटा तो हमने अपनी चालाकी से निकाल दिया परंतु तुम्हारा भाई अभी बाकी है। उनकी चाल थी, तुम्हें घर से निकालने के पश्चात मुझे शराब की गहराइयों में गुम करने की। मुझे भी शराब की आदत भैया ने ही लगाई थी। भैया-भाभी जिन्हें हमने अपने माता-पिता समान समझता था उनकी असलियत खुल चुकी थी। यह भैया-भाभी की ही चाल थी कि किसी प्रकार तुम्हें घर से निकाल दिया जाय और मैं तो शराब पीते-पीते यूँही मर जाऊँगा। मैने तुम्हें काफी ढूँढ़ने का प्रयास किया परंतु तुम्हारा कोई पता नहीं चल पाया। मैं तुम्हारे घर भी गया परन्तु वहाँ से भी मुझे निराश लौटना पड़ा। जब मैंने उनकी मनसा जान उनका विरोध करना चालू किया तो उन्होंने गुंडांे को पैसे देकर मेरा एक्सीडेंट करवा दिया। और आज मैं इस हाल में तुम्हारे सामने पड़ा हूँ। मुझे माफ कर दो और पश्चाताप के आँसू उसके आँखों से बहने लगे। रूपा ने उसे ढाढ़स बंधाया और उसे दूध पिलाया। जब राकेश पूरी तरह ठीक होकर जाने लगा तो रूपा के केबीन में गया और कहा मैं माफी के काबील तो नहीं हूँ पर हो सके तो मुझे माफ कर देना। और वह मुड़कर जाने लगा तो रूपा ने उसे बुलाया और गले से लगा लिया। राकेश को अपनी गलतियों का एहसास हो गया था। दोनों गले मिलकर रोते हुए एक दूसरे को अपना लिया। अब राकेश को भी अस्पताल में नौकरी लग चुकी थी। राकेश और रूपा और मछुआरन माँ एकसाथ रहने लगे। उनका घर परिवार बस गया था। आज से एक नए जीवन की शुरूआत हो चुकी थी। रूपा के आँसू अब मोतियों में परिवर्तित हो चुके थे।
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