ईश्वर निहित ऐश्वर्य में नहीं रहते हुए अपने स्वयं के ऐश्वर्य को खोज रहे हैं – पूज्य पाद बाबा संभव रामजी

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वाराणसी के पड़ाव स्थित अघोर पीठ श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम्, अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम में गुरुपूर्णिमा पर्व श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में सादगी, सतर्कता और सिर्फ आश्रमवासियों के बीच मनाया
गया।

अघोर पीठ आश्रम पड़ाव में गुरुपूर्णिमा पर्व सादगी से आश्रमवासियों के बीच मनाया गया l पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार इस अवसर पर बाहरी श्रद्धालुओं’ का आगमन वर्जित था। विदित हो कि संस्था द्वारा तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में प्रति वर्ष लाखों की संख्या में अपार जनसमूह यहाँ पर एकत्रित होती थी। वैश्विक महामारी कोविड-१९ के को देखते हुए सभी श्रद्धालु व भक्तजन अपने-अपने घरों में ही गुरुपूजन किये। कार्यक्रम मनाने के क्रम में आज सुबह सफाई-श्रमदान के बाद प्रातः 7 बजे पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के चिरकालिक आसन का विधिवत पूजन किया। तत्पश्चात आपने महाराजश्री बाबा कीनाराम की प्रतिमा का पूजन कर सर्वेश्वरी ध्वजारोहण किया। इसके बाद सफलयोनि का पाठ श्री पृथ्वीपाल ने किया। पाठ के उपरांत पूज्यपाद बाबा अपने आसन पर विराजमान हुए। आश्रमवासियों और आश्रम के पदाधिकारियों को दर्शन-पूजन का कार्य मात्र १५ मिनट में संपन्न किया। सायं 5 बजे एक सूक्ष्म गोष्ठी हुई जिसमें पूज्य बाबा ने देशव्यापी बंदी के दौरान संस्था द्वारा असहाय व जरुरतमंदों को दी गयी सेवाओं पर आधारित पुस्तिका “सेवा बनी ढाल” का विमोचन किया। संस्था के मंत्री डॉ० एस० पी० सिंह ने गत् गुरुपूर्णिमा जुलाई 2019 से लेकर इस वर्ष की गुरुपूर्णिमा तक संस्था द्वारा किये गए जनसेवा कार्यों को विस्तार से बताया। इसके उपरांत पूज्यपाद बाबा गुरुपद सभव राम जी अध्यक्ष श्री सर्वेश्वरी समूह ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा कि आज भयभीत नहीं होना है l पूज्य बाबा ने कहा कि आज इस समय इस परिसर में श्रद्दालुओं की अपार भीड़ रहा करती थी। मनुष्यों द्वारा जो प्रकृति का दोहन किया गया है, छेड़छाड़ की गयी है, उसका विनाश किया गया है, उसके भी दुष्परिणाम हमें भोगने पड़ते हैं। उसमे भी कई लोग ऐसे भी हैं जो अपने-आपको सुरक्षित रखते हुए अनेक कार्यों को किये हैं, कर रहे हैं, करने के लिए अपना संकल्प लिए हुए हैं, उन्हें बहुत ही साधुवाद है जिन्होंने श्रम-शक्ति देकर संस्था में अपना योगदान दिया है, दे रहे हैं या देंगे उनके लिए मैं प्रार्थना करता हूँ उस अज्ञात से, अघोरेश्वर महाप्रभु से कि उन्हें और शक्ति व संबल प्रदान करें। बहुत से लोग आज के समय में अपनों से भी दूर हैं, इसके साथ ही हम अपने से अपने करीब भी हैं, लेकिन हम अपने से सबसे करीब भी रह नहीं पा रहे हैं। जैसी रहनी रहना चाहिए जैसी करनी करना चाहिए वैसा रह और कर नहीं पा रहे हैं। अतिशय चालाकियां हों या तो उनकी मानसिकता वैसी ही हो या वह कुछ अच्छा सीखना नहीं चाहते हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो न सही बात बोल सकते हैं, न सही बात बोलते हैं, उनके लिए तो मुझे कुछ कहना नहीं है। उनकी मानसिकता विचलित हो गयी है कि वह बातों को सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। उसके चलते भी नुकसान उठाना पड़ता है- चाहे व्यक्तिगत हो चाहे सामाजिक हो। अभी ऐसा समय है कि हमलोग अपनों से, जान-पहचान वालों से, मिलने-जुलने वालों से मिल भी नहीं सकते, साथ में बैठ भी नहीं सकते। इसमें भी कई लोग भयभीत हैं, डरे हुए हैं, निराश हैं। कई लोग आत्महत्याएं कर ले रहे हैं, अपने में लड़-झगड़ रहे हैं। इसका कारण हमारी जो शिक्षा प्रणाली है, समाज के प्रति हमारी जो उदासीनता है, उस अज्ञात के, ईश्वर के प्रति उपेक्षा का भाव है और जो आधुनिकता की ओर हम अंधी दौड़ लगा रहे हैं। ईश्वरनिहित ऐश्वर्य में न रहते हुए अपने स्वयं के ऐश्वर्य को खोज रहे हैं- इसी का यह परिणाम है। कामकाज प्रभावित होने से अराजकता भी फैल रही है। ऐसे में हमारा जो अघोर दर्शन है, जो परमपूज्य अघोरेश्वर द्वारा रास्ता दिखाया गया है उसको हम बराबर अपनाएं, प्रार्थना करते रहें, ध्यान-धारणा करते रहें, उन चीजों का बराबर मनन करते रहें- इससे हमें अन्दर से आत्मबल जागेगा जो हमें किसी भी परिस्थिति में डिगने नहीं देगा। हर कार्यों को समय-काल-परिस्थिति के अनुरूप करने में हम सक्षम होंगे। जिस तरह कि यह आश्रम है और आश्रम का अर्थ है- आ+श्रम। यहाँ आकर श्रम करने का यह स्थान है। इससे यदि हमलोग जी चुराते हैं, भागते हैं तो भी हमारी उन्नति नहीं होती है। जो जिस लायक है वह करे तो बहुत ही अच्छा है। वह सर्वव्यापी सब देखता रहता है लेकिन हमें बार-बार टोकता नहीं है, हाँ यदि हमने उन ग्रंथों का अध्ययन किया है अपने कार्यों में लगे हुए हैं तो वह प्रेरणा जरूर दे देता है। आज हर किसी को भयभीत नहीं होना है केवल बच के रहना है। मोहवश किसी के यहाँ चले गये, बहुत सामान मंगा लिए, कोई नशा करता है, सिगरेट पीता है, खैनी खाता है, वह धीरे से, चोरी से मंगा लेता है, वह भी एक खतरा उत्पन्न हो सकता है हमारे लिए। नशा की गुलामी से वह नहीं छूट पा रहा है। हम गलती करेंगे तो आप भोगेंगे, आप गलती करेंगे तो हम भोगेंगे। अभी जो परिस्थितियां उत्पन्न हुयी हैं उसमे बहुत ही सतर्कता से, अपनी बुद्धि से, अपने विवेक से काम लेना है। अपने-आपको और अपने लोगों को सुरक्षित रखना है। यही समय की मांग है। इतना ही कहकर, और अधिक न बोलकर, क्योंकि हम सब यहीं रहने वाले हैं, अधिकतर लोग यहीं के हैं, आश्रम के हैं। आप सभी से विदा लेता हूँ और अघोरेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि सभी को सद्बुद्धि दें। आप सभी में बैठी प्राणमयी भगवती को प्रणाम करता हूँ। जय माँ सर्वेश्वरी।

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