उपराष्ट्रपति ने समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने का आग्रह किया
डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने के लिए निजी क्षेत्र से सस्ती टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराने का आह्वाहन
ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का आग्रह किया जिसमें भारतीय मूल्य और परम्परा प्रतिबिंबित हो
उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने आज आग्रह किया कि डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने का आग्रह किया जिससे सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके तथा माध्यमिक और उच्च शिक्षा को समावेशी बनाया जा सके।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘ फ्यूचर ऑफ एजुकेशन – नाइन मेगा ट्रेंड्स ‘ पुस्तक का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी ने न सिर्फ संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं बल्कि हमें समाज में व्याप्त विशाल डिजिटल डिवाइड के प्रति भी आगाह किया है। यह पुस्तक भारत सरकार तथा राज्य सरकारों की पहल पर ICT एकेडमी द्वारा प्रकाशित की गई है जो कि गैर लाभकारी सोसायटी है।
टेक्नोलॉजी को सस्ता और सुलभ बनाने की जरूरत पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अभी भी कितने ही बच्चों को डिजिटल उपकरण सुलभ नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें इस विशाल अंतर को पाटना होगा।
श्री नायडू ने कहा कि बंदी के कारण बड़ी संख्या में छात्र प्रभावित हुए हैं क्योंकि उन्हें ऑनलाइन शिक्षा में कठिनाई होती है। बहुतों को पारंपरिक शिक्षा से ऑनलाइन शिक्षा के परिवर्तन में सहायता की आवश्यकता पड़ती है। अतः उन्हें ऑनलाइन शिक्षा के लिए विधिवत प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि आज भी देश में अनेक अभिभावक डिजिटल उपकरणों का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। डिजिटल डिवाइड के अंतर को समाप्त करने का काम बहुत व्यापक और दुरूह है जिसे के लिए निजी क्षेत्र को सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए। उन्होंने शिक्षा टेक्नोलॉजी से संबद्ध निजी क्षेत्र की कंपनियों से आग्रह किया कि वे विद्यार्थियों की आवश्यकता को देखते हुए सस्ते शिक्षण साधन उपलब्ध कराएं – उन्होंने कहा कि ” देश निर्माण में अपना योगदान देने का तथा अपने बच्चों के लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने का, आपके लिए यह अवसर है।”
इस अवसर पर प्रधानमंत्री को उद्धृत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भविष्य में ऑनलाइन ही मुख्य लाइन होगी जिससे लोगों को अन्य किसी लाइन में न लगना पड़े। उन्होंने एक सफल, समृद्ध भविष्य के लिए सभी से प्रधानमंत्री के तीन सूत्री मंत्र ” रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म ” को सिद्ध करने का आह्वाहन किया।
महामारी के दौरान जब शिक्षण संस्थान डिजिटल माध्यम से पढ़ा रहे हैं, शिक्षक और विद्यार्थी क्लाउड प्लेटफॉर्म के माध्यम से संपर्क कर रहे हैं, शिक्षण सामग्री साझा कर रहे हैं और अपने प्रोजेक्ट्स पूरे कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां तक कि परीक्षाएं भी ऑनलाइन ही ली जा रही है।
उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वर्चुअल रिएलिटी, ऑगमेंटेड रिएलिटी जैसी तकनीकें जल्दी ही कक्षाओं में पहुंच जाएंगी और विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के पढ़ने पढ़ाने के तरीकों को बदल कर रख देंगी।
उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे बदलती जरूरतों के अनुसार विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करें। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज ऑनलाइन प्रयोगशाला के माध्यम से विद्यार्थी कहीं से भी कोई भी मशीन का उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज शिक्षक की भूमिका उनके विद्यार्थी के मार्गदर्शक, कोच, सहायक, परामर्शदाता और यहां तक कि उसके मित्र के रूप में है।
श्री नायडू ने राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे निजी क्षेत्र और गैर सरकारी संगठनों के साथ मिल कर विद्यार्थियों को हर स्तर पर अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य को साकार करने के नए उपाय खोजे।
भारत के जनसांख्यकीय लाभ की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने कहा हम इस अवसर को व्यर्थ गंवा नहीं सकते। हमें सभी बच्चों के लिए शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को सुगम और सुलभ बनाना होगा जिससे हर बच्चा अपनी निहित क्षमता अनुसार अपना भविष्य बना सके।
मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का आह्वाहन किया हो भारतीय संस्कृति और मूल्यों को प्रतिबिंबित करे। उन्होंने कहा कि हमें बच्चों में सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य पैदा करने हैं।