घर पर हीं नागपंचमी का त्योहार मनाने की विवशता

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डा आर लाल गुप्ता लखीसराय
हिन्दू पर्वों की बात की जाय तो नागपंचमी मनाने के पीछे नारी शक्ति का जीता जागता उदाहरण माना जायेगा।अन्याय पर न्याय की जीत,असत्य पर सत्य की जीत नागपंचमी पर्व से जुड़ी कहानी से सामने उभर कर आती है।
पौराणिक कथाओं पर आधारित कहानी बिहुला व उसके पति बाला लखन्दर के इर्द-गिर्द घूमती है।जब मां बिषहरी की पूजा बिहुला के श्वसुर चन्दु सौदागर द्वारा नहीं किये जाने से क्षुब्द सांपों की देवी माने जाने वाली बिषहरी ने बाला लखन्दर को सर्पदंश कराया था। जिसके बिष के असर से बालालखन्दर की प्राण जा रही थी कि बिहुला को अपने तपोबल से इसकी जानकारी हो गई कि मां बिषहरी के क्षुब्द होने का परिणाम से उसके पति सर्पदंश का शिकार हुए हैं। उसने मां बिषहरी का आह्वान कर उन्हें पुजा देने की बात कह उनके गुस्से को शांत किया जिससे उसके पति बाला लखन्दर के प्राण वापस कर सकी। माना जाता है कि तब से आज तक मां बिषहरी अथवा मां भगवती के मंदिर में दूध व धान का लावा का चढ़ावा चढ़ाया जाता है।साथ ही कहीं कहीं बकरे की बलि की भी परम्परा है।जो इस बार कोरोना काल में एहतियात के तौर पर मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं। जिससे सामुहिक पूजा पर रोक लग गई है। वहीं कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए लोगों का आवाजाही पर भी विराम लग गया है। जिससे नागपंचमी का त्योहार फीका फीका सा लग रहा है।और नागपंचमी के अवसर पर लोग अपने घरों व दुकानों में नीम का पत्ता लगाकर पारम्परिकता का निर्वहन करते हुए घर में ही आम कटहल के साथ मनचाहा व्यंजन बना नागपंचमी का त्योहार मनाने को मजबुर हैं।

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