पोषक तत्वों से भरपूर टेंगरा मछली विलुप्त के कगार पर

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डा आर लाल गुप्ता लखीसराय
पोषक तत्वों से भरपूर टेंगरा मछली विलुप्त होने के कगार पर है। करीब तीन से चार इंच लंबी टेंगरा मछली जहां बिहार के पश्चिमी जिले में टेंगरा, वजड़ीवा के नाम से लोग जानते हैं वही बिहार के पूर्वी एवं उत्तरी जिलों में इसे पलवा मछली के नाम से लोग पहचान करते हैं।
चर्बी रहित इस मछली पोषक तत्वों ओमेगा थ्री, लोहा जस्ता आयोडीन मैग्नीशियम एवं पोटैशियम की भरपूर मात्रा रहने के कारण यह डायबिटीज थायराइड से ग्रसित रोगियों को भी काफी फायदेमंद सिद्ध होती है। लो फैट प्रोटीन एवं ओमेगा 3 के कारण यह दिल के लिए भी लाभदायक है। चिकित्सकों के अनुसार मछली में असंतृप्त वसा यानी ओमेगा-3 मौजूद रहने के कारण हर्ट अटैक के खतरे को काफी कम करता है दूसरी ओर जी एच प्रोटीन से हरपुर रहने के कारण यह मांसपेशियों को जहां मजबूत करती है वही त्वचा को ढीले ढाले होने से भी बचाती है। इसमें सैनमाल, ट्राउट एवं सारडीन जैसे तत्व के पाए जाने के कारण मस्तिष्क के साथ तंत्रिका कोशिकाओं के निर्माण के लिए आवश्यक माना जाता है। इतना ही नहीं मछली खाने वालों को मोतियाबिंद, ड्राई आई सिंड्रोम एवं मैकुयलर डी जनरेशन से सुरक्षित रखती है। वही मछली को आंख के रोशनी को बढ़ाने में काफी लाभदायक माना जाता है।
सैल्मैन एवं अटलांटिक मैकेरल तत्वों के मौजूदगी के कारण मछली में विटामिन डी भरपूर मात्रा में उपलब्ध होती जो दांतो एवं मसूड़ों को पोषण देता है यही कारण है की मछली खाने वाले के दांत ज्यादातर सफेद पाए जाते हैं। मछली के उपयोग करने पर शरीर के सूजन में भी लाभ पहुंचता तथा यह जानलेवा कोलेस्ट्रोल लेबल को भी संतुलित रखता है। जिससे लंबी उम्र के साथ भी त्वचा कांतिवान बने रहते हैं।
कुदरत के नायाब रचना में शामिल टेंगरा मछली साइज में 3 से 4 इंच मात्र लंबे एवं आधे इंच की अधिकतम मोटाई के साथ ही इसके शरीर का डिजाइन मस्तिष्क पर सुगा पंखी रंग के टीके एवं शरीर पर मटमैला रंग के काले एवं सफेद धारियां होने के कारण यह काफी लुभावना दिखता है। जिससे जो मछली खाना पसंद नहीं करते वे इसे पाल भी सकते हैं। जिससे इसके लुप्त होते प्रजाति को सहेजने में कारगर क़दम हो सकता है।

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