प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि का रुख और हाल ही के प्रत्यक्ष कर सुधार

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मीडिया के एक वर्ग में इस आशय की ख़बरें हैं कि वित्त वर्ष 2019-20 में प्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि की तुलना में प्रत्यक्ष कर संग्रह की उछाल ऋणात्मक स्‍तर पर पहुंच गई है। ये रिपोर्ट प्रत्यक्ष करों के संग्रह में वृद्धि के बारे में सही तस्वीर नहीं दर्शाती हैं। वैसे तो यह सही है कि वित्त वर्ष 2018-19 में हुए शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह की तुलना में वित्त वर्ष 2019-20 में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह कम था, लेकिन प्रत्यक्ष करों के संग्रह में यह गिरावट संभावनाओं के अनुरूप ही है और लागू किए गए ऐतिहासिक कर सुधारों के साथ-साथ वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान काफी अधिक रिफंड जारी किए जाने के कारण यह गिरावट अस्थायी है।  

यह तथ्य और भी अधिक स्पष्ट तब हो जाता है जब हम सकल संग्रह (जो किसी एक वर्ष में किए गए रिफंड की मात्रा में घट-बढ़ से उत्‍पन्‍न विसंगतियों को दूर करता है) की तुलना लागू किए गए उन साहसिक कर सुधारों से जुड़ी अनुमानित राजस्व माफी को ध्‍यान में रखते हुए करते हैं जिनकी चर्चा नीचे की गई है और जिन्‍होंने वित्त वर्ष 2019-20 में प्रत्यक्ष करों के संग्रह पर सीधा प्रभाव डाला है। उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2019-20 में कुल रिफंड 1.84 लाख करोड़ रुपये का किया गया, जो वित्त वर्ष 2018-19 में किए गए 1.61 लाख करोड़ रुपये के रिफंड की तुलना में सालाना आधार पर 14% अधिक है।  

  1. सभी मौजूदा घरेलू कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्‍स की दर में कमी: विकास और निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कराधान कानून (संशोधन) अध्यादेश 2019 के जरिए एक ऐतिहासिक कर सुधार लागू किया है, जिसने वित्त वर्ष 2019-20 से सभी मौजूदा घरेलू कंपनियों के लिए 22% की रियायती कर व्यवस्था प्रदान की, बशर्ते कि वे किसी भी निर्दिष्ट छूट या प्रोत्साहन का लाभ न उठाएं। इसके अलावा, इन कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) के भुगतान से भी छूट दे दी गई है।
  1. नई विनिर्माण घरेलू कंपनियों के लिए प्रोत्साहन: विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए कराधान कानून (संशोधन) अध्यादेश 2019 के जरिए नई विनिर्माण घरेलू कंपनी के लिए टैक्‍स दर को घटाकर 15% कर दिया गया है, बशर्ते कि इस तरह की कंपनी किसी भी निर्दिष्ट छूट या प्रोत्साहन का लाभ न उठाए। इन कंपनियों को भी न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) के भुगतान से छूट दी गई है।
  2. मैट की दर में कमी: उन कंपनियों को राहत प्रदान करने के लिए मैट की दर भी 18.5% से घटाकर 15% कर दी गई है जो छूट/कटौती का लाभ उठाती रहती हैं और मैट के तहत कर का भुगतान करती हैं।  
  3. लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्तियों को आयकर से छूट और मानक कटौती में वृद्धि: इसके अलावा, 5 लाख रुपये तक की कर योग्य आय वाले व्यक्तियों को आयकर के भुगतान से पूरी तरह राहत प्रदान करने के लिए वित्त अधिनियम, 2019 के जरिए 100% कर छूट प्रदान करके 5 लाख रुपये तक की कर योग्य आय वाले व्यक्तिगत करदाता को इसकी अदायगी से छूट दे दी गई। इसके अलावा, वेतनभोगी करदाताओं को राहत देने के लिए वित्त अधिनियम, 2019 के जरिए मानक कटौती को 40,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया।
  4. . इन सुधारों का राजस्व प्रभाव कॉरपोरेट टैक्स के लिए 1.45 लाख करोड़ रुपये और व्यक्तिगत आयकर (पीआईटी) के 23,200 करोड़ रुपये आंका गया है। उपर्युक्त कर सुधारों के लिए राजस्व माफी को समायोजित करने के बाद सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह पर कर उछाल निम्नानुसार है:

    (करोड़ रुपये में)

 वित्त वर्ष 2018-19 के लिए सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह ()वित्त वर्ष 2019-20 के लिए वास्तविक सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह (बी)वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान लागू कर सुधारों से जुड़ी राजस्व माफी के कारण समायोजन(सी)वित्त वर्ष 2019-20 के लिए समायोजित सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह   (डी)=(बी+सी)वित्त वर्ष 2019-20 में सकल संग्रह की वृद्धि दर   ()(अर्थातए की तुलना में डी)सांकेतिक जीडीपी वृद्धि   दरवित्त वर्ष 2019-20  (एफ)टैक्स में उछालवित्त वर्ष 2019-20  (जी)=(/एफ)
कॉरपोरेट टैक्‍स7,69,3016,78,3981,45,0008,23,3987.037.200.98
व्यक्तिगत आयकर  (पीआईटी)5,28,3735,55,32223,2005,78,5229.497.201.32
कुल12,97,67412,33,7201,68,20014,01,9208.037.201.12
  1. अत: अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक कर सुधारों के साथ-साथ वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में जारी रिफंड के प्रभाव को हटा देने पर कुल सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह की उछाल 1.12 और कॉरपोरेट टैक्स के लिए यह लगभग 1 तथा व्यक्तिगत आयकर के लिए यह 1.32 बैठती है। इन उछाल से यह संकेत मिलता है कि प्रत्यक्ष करों के दोनों ही घटकों अर्थात कॉरपोरेट टैक्स एवं पीआईटी में वृद्धि का पथ यथावत हैं और इनमें निरंतर वृद्धि हो रही है।  इसके अलावा, यहां तक कि इस चुनौतीपूर्ण समय में भी जीडीपी वृद्धि दर की तुलना में प्रत्यक्ष करों की ऊंची वृद्धि दर यह साबित करती है कि सरकार द्वारा टैक्‍स आधार बढ़ाने के लिए हाल ही में किए गए प्रयासों के उत्‍साहवर्धक परिणाम मिल रहे हैं।
  1. इसके अलावा, यह दावा सही नहीं है कि कर सुधारों के बावजूद निवेश रफ्तार नहीं पकड़ रहा है और यह कारोबार की दुनिया की वास्तविकता के आकलन के बिना है। नई विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए विभिन्न प्रारंभिक कदमों की आवश्यकता होती है जैसे कि भूमि का अधिग्रहण, कारखाने के शेड का निर्माण, कार्यालयों एवं अन्य बुनियादी ढांचागत सुविधाओं की स्थापना, इत्‍यादि। इन गतिविधियों या कार्यों को केवल कुछ ही महीनों में पूरा नहीं किया जा सकता है और विनिर्माण संयंत्र सुधारों की घोषणा किए जाने के अगले दिन से ही वस्‍तुओं का निर्माण शुरू नहीं कर सकते हैं। कर सुधारों की घोषणा सितंबर, 2019 में की गई थी और इनके परिणाम आने वाले कुछ महीनों या आने वाले वर्षों में दिखाई देने की उम्मीद है। कोविड-19 के प्रकोप से इस प्रक्रिया में और भी ज्‍यादा देरी हो सकती है, लेकिन इन कर सुधारों की बदौलत उत्पादन में वृद्धि होना तय है और इसे रोका नहीं जा सकता है।

5.सरकार टैक्‍स की सामान्‍य दर और करदाताओं के लिए अनुपालन में आसानी सुनिश्चित कर परेशानी मुक्त प्रत्यक्ष कर परिवेश सुलभ कराने के लिए प्रतिबद्ध है । यही नहीं, सरकार प्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार करके विकास की गति बढ़ाने के लिए भी कटिबद्ध है। उपर्युक्‍त उपायों के अलावा इस दिशा में हाल ही में उठाए गए कुछ कदम निम्‍नलिखित हैं:

  1. व्यक्तिगत आयकर  – व्यक्तिगत आयकर में सुधार के लिए वित्त अधिनियम, 2020 के जरिए व्यक्तियों और सहकारी समितियों को रियायती दरों पर आयकर का भुगतान करने का विकल्प प्रदान किया गया है, बशर्ते कि वे निर्दिष्ट छूट और प्रोत्साहन का लाभ न उठाएं।  

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  1. लाभांश वितरण कर (डीडीटी) को हटा देना – भारतीय इक्विटी बाजार का आकर्षण बढ़ाने और उन निवेशकों के एक बड़े वर्ग, जिनके मामले में लाभांश आय दरअसल डीडीटी की दर से कम दर पर टैक्‍स योग्य है, को राहत देने के लिए  वित्त अधिनियम, 2020 ने लाभांश वितरण कर को हटा दिया जिसके तहत कंपनियों को 01.04.2020 से डीडीटी का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। लाभांश आय पर टैक्‍स केवल प्राप्तकर्ताओं को ही प्रभावी या लागू दर से देना होगा।
  2. विवाद से विश्वास – वर्तमान समय में बड़ी संख्‍या में प्रत्यक्ष करों से संबंधित विवाद  अधिनिर्णय के विभिन्न स्तरों पर, यथा आयुक्त (अपील) के स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में लंबित हैं। इन कर विवादों में सरकार के साथ-साथ करदाताओं के संसाधनों का भी एक बड़ा हिस्सा लग जाता है और इसके साथ ही ये विवाद सरकार को समय पर राजस्व संग्रह से वंचित कर देते हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए लंबित कर विवादों के त्‍वरित समाधान की नितांत आवश्यकता महसूस की गई, जो न केवल समय पर राजस्व सृजित करके सरकार को लाभान्वित करेगा, बल्कि करदाताओं को भी लाभान्वित करेगा क्योंकि इससे मुकदमेबाजी की बढ़ती लागत में कमी आएगी और इन प्रयासों का बेहतर उपयोग कारोबारी गतिविधियों के विस्तार में किया जा सकता है। ‘प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम, 2020’ को 17 मार्च, 2020 को कानून का रूप दिया गया जिसके तहत फि‍लहाल विवादों को निपटाने के लिए घोषणाएं दाखिल की जा रही हैं।  
  1. फेसलेस ई-आकलन योजना – ई-आकलन योजना, 2019 को 12 सितंबर, 2019 को अधिसूचित किया गया है, जो आकलन अधिकारी एवं करदाता के बीच आमने-सामने बैठक की जरूरत को समाप्त कर, कार्यात्मक विशेषज्ञता के जरिए संसाधनों का इष्‍टतम उपयोग सुनिश्चित कर और टीम-आधारित आकलन की शुरुआत कर टैक्‍स आकलन की एक नई योजना सुलभ कराती है।
  2. फेसलेस अपील  – सुधारों को अगले स्तर पर ले जाने और करदाता की व्‍यक्तिगत उपस्थिति की जरूरत को समाप्त करने के लिए वित्त अधिनियम, 2020 ने केंद्र सरकार को अपीलकर्ता और आयकर आयुक्त (अपील) के बीच विभाग के अपीलीय कार्य में ‘फेसलेस अपील योजना’ को अधिसूचित करने का अधिकार दिया।
  3. दस्तावेज पहचान संख्या (डिन) – आयकर विभाग के कामकाज में दक्षता और पारदर्शिता लाने के लिए 1 अक्टूबर, 2019 से जारी किए जाने वाले विभाग के प्रत्येक संचार में अनिवार्य रूप से एक कंप्यूटर-सृजित विशिष्‍ट दस्तावेज पहचान संख्या (डिन) का होना आवश्‍यक है, चाहे वह आकलन, अपील, जांच, दंड और शुद्धि या संशोधन, इत्‍यदि से ही संबंधित क्‍यों न हो।  
  4. पहले से ही भरे हुए आयकर रिटर्न फॉर्म– कर अनुपालन को और भी अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए व्यक्तिगत करदाताओं को पहले से ही भरे हुए आयकर रिटर्न (आईटीआर) फॉर्म सुलभ कराए गए हैं। आईटीआर फॉर्म में अब कुछ विशिष्‍ट आय जैसे कि वेतन आय के पहले से ही भरे हुए विवरण होते हैं। आईटीआर फॉर्म में पहले से ही भरे हुए और भी अधिक लेन-देन के विवरण देकर फॉर्म में पहले से ही भरी हुई जानकारियों का दायरा निरंतर बढ़ाया जा रहा है।
  5. डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना – अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण को सुगम बनाने और बेहिसाब लेन-देन को कम करने के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं, जिनमें डिजिटल टर्नओवर पर अनुमानित लाभ की दर में कमी करना, लेन- देन के निर्दिष्‍ट तरीकों पर एमडीआर शुल्क को हटाना, नकद लेन-देन के लिए प्रारंभिक सीमा को कम करना, कुछ विशेष नकदी लेनदेन पर रोक लगाना, इत्‍यादि शामिल हैं।
  6. स्टार्ट-अप्‍स के लिए अनुपालन मानदंडों को सरल बनाना – स्टार्ट-अप्‍स को परेशानी मुक्त टैक्‍स माहौल सुलभ कराया गया है जिनमें आकलन प्रक्रिया का सरलीकरण, एंजल-टैक्स से छूट, समर्पित या विशेष स्टार्ट-अप प्रकोष्‍ठ बनाना, इत्‍यादि शामिल हैं।  
  7. अभियोजन के लिए मानदंडों में छूट: अभियोजन शुरू करने की आरंभिक सीमा काफी बढ़ा दी गई है। अभियोजन की स्वीकृति के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के कॉलेजियम की एक प्रणाली शुरू की गई है। कंपाउंडिंग के मानदंडों में भी ढील दी गई है।
  8. अपील दाखिल करने के लिए मौद्रिक सीमा बढ़ाना– करदाताओं की शिकायतों/मुकदमेबाजी में प्रभावकारी रूप से कमी लाने और मुख्‍यत: जटिल कानूनी मुद्दों एवं ज्‍यादा टैक्‍स अदायगी वाले मुकदमों पर ही आयकर विभाग का ध्यान केंद्रित करने में मदद करने के लिए विभागीय अपील दाखिल करने के लिए आरंभिक मौद्रिक सीमा को आईटीएटी में अपील करने के लिए 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये, उच्च न्यायालय में अपील करने के लिए 50 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 1 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
  9. टीडीएस/टीसीएस के दायरे का विस्तार – कर आधार बढ़ाने के लिए कई नए लेन-देन को स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) और स्रोत पर कर संग्रह (टीसीएस) के दायरे में लाया गया। इन लेन-देन में भारी-भरकम या व्‍यापक नकद निकासी, विदेश भेजी गई रकम, लक्जरी कार की खरीद, ई-कॉमर्स के प्रतिभागी, वस्‍तुओं की बिक्री, अचल संपत्ति का अधिग्रहण, इत्‍यादि शामिल हैं। 

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