राज्‍यसभा सभापति ने सदस्यों से संगठित और समावेशी भारत के लिए आवाज उठाने तथा काम करने की अपील कीश्री वेंकैया नायडू ने केवल रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि सरकार की तथ्यपरक, विश्वसनीय आलोचना की वकालत की

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राज्‍यसभा सभापति ने सदस्यों से संगठित और समावेशी भारत के लिए आवाज उठाने तथा काम करने की अपील कीश्री वेंकैया नायडू ने केवल रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि सरकार की तथ्यपरक, विश्वसनीय आलोचना की वकालत कीनये सदस्यों को बदलाव लाने के लिए देश की स्थिति की जानकारी रखने की सलाह दी श्री नायडू ने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि सदस्य क्या बोलते हैं न कि कितनी देर बोलते हैंअस्पष्ट, दोहराव वाले विचारों का कोई उपयोग नहीं है; समय प्रबंधन में विशिष्ट, नए दृष्टिकोण सहायता करते हैंसभापति ने जोर देकर कहा कि पद की अवमानना सदन का अनादर हैश्री नायडू ने नये सदस्यों को प्रभावी सांसद बनने के लिए 12 सुझाव दिएPosted Date:- Mar 13, 2021 राज्यसभा के सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज सदन के नवनिर्वाचित सदस्यों को प्रभावी सांसदों के रूप में सदन के कामकाज तथा राष्ट्र निर्माण में बदलाव लाने के लिए 12 सुझाव दिए। उन्होंने राज्यसभा के नये निर्वाचित सदस्यों के लिए दो दिवसीय अनुकूलन कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए सदन के भीतर और बाहर दोनों जगह उनके आचरण को लेकर सदस्यों को परामर्श दिया। श्री वेंकैया नायडू ने जोर देकर कहा कि केवल रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि सरकार की तथ्यपरक, विश्वसनीय आलोचना की जानी चाहिए। उन्‍होंने कहा ‘विपक्ष को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है। वास्तव में, यह उनका कर्तव्य है। लेकिन, आलोचना तथ्यपरक होनी चाहिए ताकि यह विश्वसनीय लगे। केवल रिकॉर्ड के लिए सरकार के प्रत्‍येक कदम का विरोध करने से उनकी साख को चोट पहुंचती है। आलोचना की गुणवत्‍ता वास्‍तव में सरकार के लिए प्रेरित करने वाली होनी चाहिए और उस पर मीडिया तथा लोगों का ध्‍यान जाना चाहिए। सदस्‍यों से देश के रूपांतरण में प्रभावी रूप से योगदान देने के लिए राष्‍ट्र की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्‍त करने का आग्रह करते हुए, श्री नायडू ने कहा, ‘‘जाति, वर्ण, क्षेत्र तथा धर्म के आधार पर बांटने की कोशिशों को रोकने के साथ ही हमारे बहु-सांस्‍कृतिक समाज की एकता और समावेशन सुनिश्चित करना तथा उसे और सुदृढ़ बनाना भी आपका कर्तव्‍य है। आप में से प्रत्‍येक व्‍यक्ति को निश्चित रूप से आकांक्षी, सक्षम, गतिशील और एकजुट भारत के प्रवक्‍ता के रूप में उभर कर सामने आना चाहिए।’’ उन्‍होंने सदस्‍यों को देश की प्रगति को बाधित करने की कोशिशों के बारे में भी सावधान किया, जिनकी आवाज सीमा के साथ कुछ उपद्रवों, छिटपुट घटनाओं के आधार पर देश की गलत आलोचना के रूप में वैश्विक स्तर पर जगह पा रही है जिसके कारण हमारे लोकतंत्र की छवि खराब हो रही है, आर्थिक प्रतिबंधों, सीमापार आतंक आदि को बढ़ावा मिल रहा है। उन्‍होंने सदस्‍यों से प्रत्‍येक मंच पर ऐसे प्रयासों को प्रभावी रूप से खत्‍म करने की अपील की। श्री नायडू ने सदस्‍यों को इस प्रकार के खतरों को लेकर हर वक्‍त सावधान रहने के द्वारा देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के उनके कर्तव्‍य की भी याद दिलाई। सदन में समय प्रबंधन की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि विचार प्रस्‍तुत करने (इंटरवेंशन) की लंबी अवधि महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि प्रस्तुत किया गया कंटेंट और परिप्रेक्ष्‍य महत्‍वपूर्ण हैं। उन्होंने सदस्यों से आग्रह किया कि वे दोहराव से बचें क्‍योंकि यह मीडिया की दिलचस्‍पी को भी खत्‍म करता है और इसके बजाय विशिष्‍ट बातों की चर्चा करें। उन्होंने दिन की कार्यवाही निलंबित करने के लिए नियम 267 के तहत नोटिस देने जैसे रुटीन नोटिस देने तथा जब कोई उठाने वाला बिंदु न हो, उस वक्‍त भी प्‍वांइट्स ऑफ आर्डर उठाने जो कि व्यवधानों का प्रमुख कारण बनता है, से बचने का सुझाव दिया। सभापति ने सदस्‍यों से सदन में मुद्दों को उठाने से पहले उनके बारे गहन जानकारी जुटाने का आग्रह किया जिससे कि जब व्‍यापक निहितार्थों के साथ जटिल मुद्दों पर चर्चा की जाए तो वे साधारण तथा अपनी बातों में अस्‍पष्‍ट न रह सकें। देश में विधायिका के कामकाज को लेकर आम जनता में बढ़ते ‘‘नकारात्‍मक अवधारणा अनुपात’’ पर चिंता जताते हुए सभापति श्री नायडू ने सदस्‍यों से सदन की कार्यवाहियों के व्‍यापक नियमों तथा परंपराओं, जो सदन के कामकाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए कई वर्षों में विकसित हुई है, का अनुपालन करने को कहा। उन्‍होंने यह भी कहा कि ‘‘इन नियमों में प्रत्‍येक आकस्मिकता के लिए व्‍यवस्‍था की गई है। राज्‍यसभा में मेरे 20 वर्षों तथा इसके सभापति के रूप में साढ़े तीन वर्षों के दौरान मैंने ऐसी कोई स्थिति नहीं देखी जहां सदन में प्रक्रियागत मामलों के समाधान में नियमों की अपर्याप्‍तता महसूस की गई है।” यह कहते हुए कि सदस्‍यों का नियमों एवं परंपराओं के अनुरूप सदन में अपना उचित स्‍थान प्राप्‍त करने का अधिकार है और पीठासीन अधिकारी उनके संरक्षक हैं, श्री नायडू ने पाया कि सभापति के निर्णय का अनुपालन करना अंततोगत्‍वा सदस्‍यों और सदन के हित में ही है। उन्‍होंने कहा कि ‘‘आपको यह समझना चाहिए कि सभापति की अवहेलना करना सदन का अनादर करना है। मुझे भरोसा है कि आप ऐसा नहीं करेंगे।” सभापति ने सदस्‍यों से संविधान के प्रावधानों तथा दर्शन की पूरी समझ प्राप्‍त करने का भी आग्रह किया जो सदस्‍यों के लिए प्रचालनगत ढांचा प्रस्‍तुत करने के अतिरिक्‍त देश के सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण का भी मार्ग प्रशस्‍त करता है। उन्‍होंने राज्‍यसभा की भूमिका तथा उद्भव के बारे में पर्याप्‍त ज्ञान की आवश्‍यकता तथा बिना अवरोधक बने आजादी के बाद से देश के विकास के लिए साझा विजन के आधार पर लोकसभा के साथ इसके सामंजस्‍यपूर्ण कामकाज का भी उल्‍लेख किया। उन्‍होंने उनके कामकाज की सहायता में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग करने के लिए सदस्‍यों से टेकसैवी होने की आवश्‍यकता पर भी जोर दिया। यह भी कहा कि देश के सार्वजनिक जीवन में विधायिका का सदस्य बनना सबसे लोकप्रिय कार्य है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करने से भी अधिक कठिन है, सभापति श्री नायडू ने नवनिर्वाचित सदस्‍यों से प्रभावी सांसदों के रूप में खुद को ढालने के द्वारा राष्‍ट्र की प्रगति में योगदान देने के अवसर का लाभ उठाने का आग्रह किया। इस अवसर पर राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश, राज्‍यसभा नवनिर्वाचित/मनोनीत सदस्‍य, महासचिव श्री देश दीपक वर्मा, सचिव डॉ. पी.पी.के. रामचार्युलु तथा राज्‍यसभा सचिवालय के वरिष्‍ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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