श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र बेनीपुर स्थित माँ भगवती स्थान को नवनिर्माण कर बनाया जा रहा भव्य
डा आर लाल गुप्ता लखीसराय
जिले के
पीरी बाजार थाना क्षेत्र के अभयपुर (बेनीपुर) स्थित श्री श्री 108 माँ मनषा विषहरी मंदिर लोगों केे अटूट श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र रहा है।जिसे पुराने मंदिर के बजाय नये भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। यह मंदिर कजरा धरहरा मुख्य पथ पर अवस्थित है। श्रद्धालु भक्तों का माता रानी पर अटूट श्रद्धा एवं विश्वास है। जो लोग सच्चे मन से माँ की आराधना करते है माता रानी उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करती है। यही वजह की यहाँ सालों भर श्रद्धालु भक्तों का आना जाना लगा रहता है।
यह मंदिर सात सौ साल से अधिक पुराना है। मंदिर भवन के शीला निर्माण वर्ष सन 1315 ई. होने की पुष्टि कर रहा है। जबकि मंदिर उससे भी काफी पुराना है। हालांकि पौराणिक मंदिर अब सिर्फ यादों में सिमट कर रह गया है। क्योंकि अब उस स्थान पर जनसहयोग से माँ भगवती सेवा संस्थान के तत्वावधान में भारत के प्रसिद्ध वास्तुकार एवं शिल्पकार के द्वारा 151 फीट ऊंचा भव्य मंदिर निर्माण कराया जा रहा है।
बताया जाता है कि माता रानी निवास स्थल पूर्व में खगड़िया जिला के चौथम पंचायत के बौरने गाँव के पास हुआ करता था। साधक भक्त देवी को प्रसन्न कर यहाँ लाया । ऐसा मानना है कि साधक भक्त जब शीला रूप में देवी को लाने जा रहे थे बीच रास्ते में गंगा नदी आने के बाद देवी ने अपने अंग वस्त्र को फैला कर उसी के सहारे नदी को पार करने को कही। साधक अपनी धोती को पानी के ऊपर फैला दिया एवं उसी पर बैठ कर अन्य भक्तों के साथ गंगा नदी पार किया।
ऐसा भी मानना है कि वहाँ से आने के क्रम में देवी को हर कदम पर कुश से बकरे की बलि दी जाती थी। बकरा स्वयं प्रगट होता था एवं बलि के साथ ही विलुप्त हो जाता था। इस तरह देवी को अभयपुर तक लाया जा सका। साधक भक्त देवी को गाँव के और करीब लाना चाहते थे। मगर देवी ने इसी स्थान पर रहना पसंद किया। शुरूआती दिनों में लोगों ने घास-फुस के ही मंदिर बना पूजा अर्चना शुरू की बाद में ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर बनाया गया। अब वहाँ भव्य मंदिर आकार लेने जा रहा है।
शारदीय नवरात्रि में यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है। श्रद्धालु भक्त दस दिनों तक मंदिर में रहकर पूजा-पाठ करते हैं। साथ ही संतान प्राप्ति की कामना को लेकर अष्टमी की रात्रि निशा पूजा में महिला भक्त निर्जला उपवास रख कर निशा पूजा में कुष्मांडा एवं तलवार में सिंदूर लगाती हैं। ऐसा करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के बाद यहाँ मुंडन संस्कार कराया जाता है।
श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी को यहाँ भव्य नागपंचमी मेले का आयेाजन किया जाता है। इस दिन यहाँ दूर-दूर से लोग माता रानी के दर्शन को आते हैं। इसके साथ ही प्रत्येक सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार को विशेष बैरागन पूजा होती है। उस दिन यहाँ बकरे की बलि देने की प्रथा है। इसके अलावा शादी-विवाह का भी आयोजन किया जाता है।माना जा रहा है कि इस मंदिर के निर्माण होने से और अधिक संख्या में श्रद्धालु जुटेंगे जिससे क्षेत्र के लोगों को विभिन्न तरह के रोजगार का अवसर मिलेगा।