200 किसानों के नियमित आय का जरिया बना वर्मी कंपोष्ट
अदाणी फाउंडेशन की मदद से तैयार हुआ स्वरोजगार का आत्मनिर्भर मॉडल
गोबर और घरेलू कचरे से भी किसान की आय दुगुनी हो सकती है बशर्ते आपको गोड्डा के नयाबाद गांव की रहने वाली कनकलता सोरेन से प्रेरणा और प्रशिक्षण लेनी होगी. कनकलता सोरेन प्रतिमाह लगभग 10 क्विंटल वर्मी कंपोष्ट तैयार करती है जिसे बेच कर 5 से 6 हजार रूपये प्रतिमाह आमदनी कर रही है. इसके अलावा प्रतिमाह 4 से 5 किलो केंचुआ बेच कर भी कनकलता अतिरिक्त आमदनी कर लेती है। कनकलता के स्वरोजगार की यात्रा अदाणी फाउंडेशन द्वारा मोतिया में लगाए गए ट्रेनिंग कैंप से शुरू हुई, जहां से प्रशिक्षण लेने के बाद गोड्डा के 200 से अधिक किसान केंचुआ खाद तैयार करके अच्छी खासी आमदनी कर रहे हैं.
दरअसल एक गांव में पूर्ण रूप से जैविक खेती के लिए लगभग 5000 क्विंटल केंचुआ खाद की जरूरत होती है. जबकि एक गांव में सारे किसान मिलकर भी केंचुआ खाद बनाने की कोशिश करें तब भी लगभग 2000 क्विंटल ही केंचुआ खाद तैयार हो पाएगा. यानि मांग और पूर्ति के अंतर को देखा जाए तो साफ है कि इस क्षेत्र में संभावना अपार है. एक तरफ जहां जैविक खेती में उर्वरक के तौर पर मुख्य रूप से वर्मी कंपोश्ट का उपयोग किया जाता है तो नहीं स्थानीय नर्सरी के अलाना दार्जिंलिंग के आर्गेनिक चाय बागानों में केंचुआ खाद की भरपूर मांग रहती है।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक?
वर्तमान दौर में खेती में प्रयुक्त रासायनिक खाद और कीटनाशक के अत्यधिक प्रयोग के चलते जैविक अनाज की मांग बहुत ज्यादा बढ़ी है। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो वर्मी कंपोष्ट के इस्तेमाल से एक तरफ जहां मिट्टी की गुणवत्ता में सुदार होता है तो वहीं मिटिटी में नमी बनाए रखने की क्षमता भी काफी बढ़ जाती है। इसके अलावा मिट्टी में कार्बन कंटेंट एवं माइक्रो न्यूट्रेंट्स की मात्रा भी बढ़ जाती है।
केंचुआ खाद से कितनी है कमाई?
ग्रामीणों को वर्मी कंपोष्ट तैयार करने का प्रशिक्षण देने के बाद अदाणी फाउंडेशन की ओर से किसानों को डिस्पोजेबल बैग एवं केंचुआ भी उपलब्ध कराया जाता है। बैग की लंबाई-चैडाई 12 फीट-3 फीट होती है जबकि उंचाई 2.5 फीट रहती है जिसमें लगभग 1000 किलो वर्मी कंपोष्ट तैयार किया जा सकता है। साधारणतया 1200 से 1500 में एक ट्रेक्टर गोबर उपलब्ध है. मजदूरी तथा अन्य उत्पादन खर्च को जोड़ कर देखा जाय तो लगभग 2000 रुपये में एक बैग वर्मी कंपोष्ट तैयार हो जाता है. जिसे बेच कर 5 से 6 हजार की कमाई हो जाती है। अब अगर एक किसान के पास तीन बैग है तो वह प्रतिमाह 5 से 6 हजार रुपये की नियमित आमदनी कर सकता है। ऐसा ही मॉडल अदाणी पावर प्लांट के आस-पास के गांवों में रहने वाले 200 किसान परिवारों में चल रहा है. सोनडीहा, मोतिया, पटवा, बसंतपुर, रंगनिया, पेटवी, कौड़ीबहियार, गुम्मा, बेलवर्ना, डुमरिया समेत पथरगामा, महागामा एवं ठाकुरगंगटी के विभिन्न गांवों में आजीविका का श्रोत बना हुआ है।
विशेष रूप से लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर वापस घर पहुंचने के बाद अब इस तरह के स्वरोजगार के मॉडल को अपना कर आमदनी का एक निश्चित श्रोत बना कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं।