रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 1971 के युद्ध में भारत की जीत के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में स्वर्णिम विजय पर्व का उद्घाटन किया
राजनाथ सिंह ने युद्ध में जीत सुनिश्चित करने वाले बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी; कहा- देश हमेशा उनके बलिदान का ऋणी रहेगा
Posted Date:- Dec 12, 2021
रक्षा मंत्री के भाषण की मुख्य विशेषताएं:
- जनरल बिपिन रावत के असामयिक निधन से भारत ने एक बहादुर सैनिक, एक योग्य सलाहकार और एक जिंदादिल इंसान खो दिया है।
- भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया और न ही कभी किसी दूसरे की एक इंच जमीन पर कब्जा किया है।
- पाकिस्तान आतंकवाद और अन्य भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देकर भारत में शांति भंग करना चाहता है; हम आमने-सामने के युद्ध में जीते हैं और अप्रत्यक्ष युद्ध में भी जीत हमारी ही होगी।
- कोई हमें बांटने की जितनी कोशिश करेगा, हम उतने ही एकजुट होंगे और अपने दुश्मनों का सामना करेंगे।
- हमारा उद्देश्य अपने सशस्त्र बलों को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रखना है।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 12 दिसंबर, 2021 को नई दिल्ली में इंडिया गेट लॉन में भारत-पाक 1971 युद्ध में बांग्लादेश की मुक्ति में सशस्त्र बलों की वीरता एवं दक्षता और उनके योगदान की याद में आयोजित कार्यक्रम ‘स्वर्णिम विजय पर्व’ का उद्घाटन किया। यह आयोजन युद्ध में भारत की जीत के 50 साल पूरे होने के साल भर चलने वाले समारोह की पराकाष्ठा का प्रतीक है। श्री राजनाथ सिंह ने देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत को श्रद्धांजलि अर्पित कर कार्यक्रम में अपने संबोधन की शुरुआत की, जिनका 08 दिसंबर, 2021 को तमिलनाडु में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में निधन हो गया। उन्होंने कहा, “जनरल रावत की असामयिक मौत से भारत ने एक बहादुर सैनिक, एक योग्य सलाहकार और एक जिंदादिल शख्सियत को खो दिया है। वह स्वर्णिम विजय पर्व में भाग लेने के लिए काफी उत्सुक थे।”
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘स्वर्णिम विजय पर्व’ को एक उत्सव बताया, जो 1971 के युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों की शानदार जीत की याद दिलाता है जिसने दक्षिण एशिया के इतिहास और भूगोल को बदल दिया। उन्होंने 1971 के युद्ध में जीत सुनिश्चित करने वाले बहादुर भारतीय सैनिकों, नाविकों और वायु सेना के योद्धाओं तथा उनके परिवारों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि देश हमेशा उनके बलिदान का ऋणी रहेगा। उन्होंने कहा, “यह त्योहार इस बात का प्रमाण है कि 1971 की यादें आज भी हर भारतीय के दिल में ताजा हैं। साथ ही, यह 1971 के युद्ध के दौरान हमारी सेना के जोश, जुनून और वीरता का प्रतीक है। यह हमें उसी उत्साह और जोश के साथ राष्ट्र की प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।”
श्री राजनाथ सिंह ने 1971 के युद्ध में जीत को मानवता की भावना और भारतीयों के सार्वभौमिक भाईचारे का प्रतीक बताया, जो एक ऐसे देश में रहते हैं जो पूरी पृथ्वी को अपना परिवार मानता है और हमेशा सच्चाई तथा न्याय के लिए खड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि 1971 के युद्ध में हमारी जीत अमानवीयता पर मानवता की जीत, कदाचार पर सदाचार और अन्याय पर न्याय की जीत थी। उन्होंने न्यूयॉर्क के एक प्रसिद्ध भाषण में मार्टिन लूथर किंग जूनियर के एक बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘अन्याय कहीं भी हो, वो हर जगह न्याय के लिए खतरा है’। श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचार पूरी मानवता के लिए खतरा थे और उन्हें उस अन्याय और शोषण से मुक्त करना भारत की जिम्मेदारी थी।
श्री राजनाथ सिंह ने युद्ध के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों के दृढ़ संकल्प, समन्वय और वीरता को याद किया। उन्होंने कहा, “हमारे सशस्त्र बलों ने ‘मुक्तिवाहिनी’ का सहयोग किया, लाखों शरणार्थियों की मदद की और पश्चिमी तथा उत्तरी क्षेत्र से किसी भी तरह की आक्रामकता को रोका। उन्होंने सुनिश्चित किया कि विश्व समुदाय में शांति, न्याय और मानवता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता बनी रहे।”
रक्षा मंत्री ने कहा कि 1971 का युद्ध भारत की नैतिकता और लोकतांत्रिक परंपराओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होने कहा, “इतिहास में ऐसा कम ही देखने को मिलेगा कि किसी देश को युद्ध में हराकर कोई देश अपना प्रभुत्व नहीं थोपता, बल्कि सत्ता उसके राजनीतिक प्रतिनिधि को सौंप देता है। भारत ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया और न ही किसी अन्य देश की एक इंच भी भूमि पर कब्जा किया है।“ श्री राजनाथ सिंह ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना में भारत के योगदान को याद किया और इस तथ्य की सराहना की कि यह पिछले 50 वर्षों में विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ा है जो दुनिया के लिए एक प्रेरणा है।
श्री राजनाथ सिंह ने यह भी बताया कि रामायण, महाभारत के युग से लेकर 1857, 1947, 1965, 1971 और 1999 के करगिल युद्ध तक बर्बरता, अमानवीयता और गैर-जिम्मेदार शक्तियों के खिलाफ युद्ध लड़ने का भारत का इतिहास रहा है। उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि भारत के इतिहास में अधिकांश सैन्य अभियानों को ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया है। 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान द्वारा झंगर पर पुनः कब्जा करने तथा 1961 में गोवा, दमन और दीव की मुक्ति से लेकर 1999 के करगिल युद्ध में शानदार जीत तक जिसे ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, को भी ऑपरेशन विजय नाम दिया गया। उन्होंने कहा कि स्वर्णिम विजय पर्व किसी विशेष अभियान के बारे में नहीं है, बल्कि यह सशस्त्र बलों और पूरे देश की जीत की भावना का एक उत्सव है।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 1971 के युद्ध को 20वीं सदी में दो विश्व युद्धों के बाद दुनिया के सबसे निर्णायक युद्धों में से एक करार दिया। उन्होंने कहा, “यह युद्ध हमें बताता है कि धर्म के आधार पर भारत का विभाजन एक ऐतिहासिक भूल थी। पाकिस्तान का जन्म एक धर्म के नाम पर हुआ लेकिन वह एक नहीं रह सका। 1971 की हार के बाद वह लगातार छद्म युद्ध लड़ रहा है। आतंकवाद और अन्य भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देकर पाकिस्तान भारत में शांति भंग करना चाहता है। भारतीय सेना ने 1971 में उसकी योजनाओं को विफल कर दिया था और अभी आतंकवाद को जड़ से खत्म करने का काम जारी है। हम आमने-सामने के युद्ध में जीते हैं और जीत इस अप्रत्यक्ष युद्ध में भी हमारी ही होगी।“
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान में भारत विरोधी भावना को इस बात में देखा जा सकता है कि वे अपनी मिसाइलों के नाम गोरी, गजनवी, अब्दाली जैसे उन आक्रमणकारियों के नाम पर रखते हैं जिन्होंने भारत पर हमला किया जबकि भारत की मिसाइलों के नाम आकाश, पृथ्वी, अग्नि है। अब हमारी एक मिसाइल का नाम संत भी रखा गया है। उन्होंने 11 दिसंबर, 2021 को पोखरण रेंज से स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित हेलीकॉप्टर-लॉन्च स्टैंड-ऑफ एंटी टैंक (एसएएनटी) मिसाइल के सफल उड़ान परीक्षण के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को बधाई दी।
रक्षा मंत्री ने 1971 के युद्ध को तीनों सेनाओं के बीच बेहतर गठजोड़ और एकीकरण का एक शानदार उदाहरण बताया, जिसमें योजना, प्रशिक्षण और एक साथ मिलकर लड़ने के महत्व को रेखांकित किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार सशस्त्र बलों को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। उन्होंने कहा, “चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद और सैन्य मामलों के विभाग का सृजन कुछ ऐसे सुधार हैं जो सशस्त्र बलों की भविष्य की जरूरतों को पूरा करेंगे। सशस्त्र बलों को अधिक सक्षम, कुशल और आत्मनिर्भर बनाने के लिए खरीद से लेकर उत्पादन तक सभी प्रयास किए जा रहे हैं। रक्षा अनुसंधान, विकास और विनिर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। आत्म-निर्भर भारत अभियान के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। हमारा उद्देश्य अपने सशस्त्र बलों को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रखना है।” 1961 में गोवा की मुक्ति के संघर्ष को याद करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि वह संघर्ष इस बात का गवाह था कि कोई हमें जितना बांटने की कोशिश करता है, हम उतने ही एकजुट होते हैं और अपने दुश्मनों का सामना करते हैं।
कार्यक्रम के दौरान बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध मामलों के मंत्री श्री मोजम्मेल हक और मुक्ति जोधा के वीडियो संदेश प्रदर्शित किए गए। इसके बाद वॉल ऑफ फ़ेम का अनावरण किया गया और 1971 के युद्ध के दौरान उपयोग किए गए प्रमुख हथियारों और उपकरणों के माध्यम से एक अभियान चलाया गया।
अगले दो दिनों की अवधि में लाइट एंड साउंड शो, डॉग शो, हॉट एयर बैलूनिंग के अलावा कलारीपयट्टू, गटका और खुकरी नृत्य प्रदर्शन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है। इस दौरान युद्ध पर आधारित फिल्में और 1971 के युद्ध के पूर्वी और पश्चिमी मोर्चे पर प्रमुख अभियानों को दर्शाने वाली एक भव्य युद्ध प्रदर्शनी भी दिखाई जाएगी। सबसे शानदार अभियानों में से चार का पुनर्निर्माण युद्ध प्रदर्शनियों के रूप में किया जाएगा, जिसमें पाकिस्तानी ठिकानों पर कब्जा करने वाले तोपों के साथ पीटी -76 टैंकों की चित्रावली और इसके मॉडल प्रदर्शित किए जाएंगे।
यह आयोजन 16 दिसंबर, 2021 को नई दिल्ली में एक भव्य समारोह में विजय ज्वाला – स्वर्णिम विजय मशाल की साल भर की यात्रा के समापन को भी चिह्नित करेगा, जिसने पूरे देश का भ्रमण किया और युद्ध के वीर सैनिकों के गांवों से मिट्टी के नमूने एकत्र किए।
इस कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान रक्षा राज्य मंत्री श्री अजय भट्ट, सेनाध्यक्ष जनरल एम. एम. नरवणे, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार, रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार, सचिव (भूतपूर्व सैनिक कल्याण) श्री बी आनंद, वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं) श्री संजीव मित्तल, रक्षा मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ नागरिक और सैन्य अधिकारी, राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के कैडेट और आम लोग मौजूद थे।