पहाड़ी नदी बनी अतिक्रमण का शिकार

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डा आर लाल गुप्ता लखीसराय
जमालपुर किऊल रेलखंड के कजरा खैरा रेल गुमटी से उरैन रोड कजरा के संत माइकल एकेडमी तक के पहाड़ी नदी पर रेल व सड़क मार्ग पर बने पुलिया इन दिनों अतिक्रमण का शिकार हो अपने उद्धारकर्ता का बाट जोहता प्रतीत होता है।
इतना ही नहीं बल्कि बाज़ार स्थित नदी तो कुडेदान बनकर रह गया है। जिससे उधर से गुजरने वाले लोगों को उसके सड़े बदबू के कारण नाक व मुंह को ढक कर आना जाना पड़ता है। जिसमें विभिन्न किस्मों के मच्छर व अन्य प्रकार के कीड़े मकोड़े पनपने से डेंगू, मलेरिया, डायरिया जैसे बिमारियां के खतरे को कारक बन सकता है। बताते चलें कि करीब तीन-चार साल पूर्व अचानक हुई तेज बारिश से अतिक्रमित नदियों के रास्ते जल की समुचित निकासी नहीं हो पाई थी जिससे पुरे रेलवे ट्रैक पर करीब एक से दो फ़ीट तक पानी आ गया था और रेलवे का परिचालन चार से पांच घंटे तक स्थगित कर देना पड़ा था। हालांकि बाद में रेल विभाग द्वारा रेलवे लाइन के आस पास नदियों को थोडी बहुत सफ़ाई कर खाना पूर्ति भर किया गया। जिससे आज भी उक्त नदियों की स्थिति ज्यों के त्यों पड़ी है।साथ ही बाज़ार से बाहर वाली नदियों को भी पास के किसानों द्वारा अतिक्रमित कर ली गई है। जिससे बरसात में पहाड़ीयों के पास निर्मित जलाश्य भरने के बाद उतरने वाले जल दिशा विहीन हो कर बरबाद हो जाता जिससे कृषि कार्य
के लिए भी प्रर्याप्त नहीं हो पाता। जबकि नदी के रास्ते अगर जल प्रवाहित होता तो बरसात के बाद किसान नदी में बांध बांधकर जल संचय कर पाते और आवश्यकता नुसार कृषि कार्य में उसका उपयोग कर पाते। जो न तो रेल अथवा न तो बिहार सरकार के द्वारा अतिक्रमण मुक्त व सफ़ाई हो पा रही है। संभवतः विधानसभा चुनाव में किसानों द्वारा यह मुद्दा भी उठाए जाने के संकेत मिल रहे हैं।

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