Sarweswary Samooh अबहूँ से तू चेत

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Sarweswary Samooh

Sarweswary Samooh औघड़ लोग सागर की तरह ही एक रस ‘लावण्य रस’
से भरे रहते हैं उनमें उनसे भिन्न कोई रस होता ही
नहीं। अन्य मत-मतान्तरों में सैकड़ों रस होते हैं।
अपने देश और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना
ही वह रस है जो उस उत्तरदायित्व को समझता है,
वह किंकत्र्तव्यविमूढ़ नहीं हो सकता। वह शराब, गाँजा,
अफीम पीकर दूसरे के समाने प्रदर्शन नहीं करता है।
उसमें अपने सीमित सामग्रियों को जरूरतमंद और अधिकारी
व्यक्तियों को ही मुहैया कराने का उत्साह होता है।
पू0 अघोरेश्वर भगवान राम

Sarweswary Samooh हमें अभाव की स्थिति में फटेहाल जीने के लिए बाध्य कर देते हैं। तरुणों को श्रम तथा संचय के महत्व को विस्तार से समझाते हुए पूज्य बाबा ने उन्हें सचेत करते हुए कहा कि यदि आप श्रम किए और संचय नहीं किए तो सबलोग अपमानित करेंगे। आप खुद भी अपने को अपने से अपमानित करना शुरू कर देंगे। श्रम न करने वाले उच्च
यहाँ तक आपने पिछले अंक में पढ़ा अब आगे…
Sarweswary Samooh उच्च शिक्षा प्राप्त युवक भी घर गाँव में लड़ाई-झगड़ा लगाने वाले बनकर समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं। इसलिए तरुणों को रचनात्मक कार्यों में जुट जाना चाहिए। रचनात्मक कार्यों में पहले तो वे देशाटन कर व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करें। जहाँ रहते हैं वहाँ स्वच्छता रखें और स्वच्छता-सफाई रखने की प्रेरणा दें। ‘एकला चलो’ अकेले चलने के सि(ान्त का प्रतिपालन करते हुए इस दिशा में प्रयास करें क्योंकि शासक अकेला होता है। सन्त अकेला होता है। सन्तों का झुण्ड नहीं होता है। झुण्ड तो भेंड़ का होता है। अच्छे लोगों का झुण्ड नहीं होता है। भेंड़-बकरियों का झुण्ड का होता है। मछली के बच्चों को तैरना तथा सिंह के बच्चों को शिकार करना नहीं सिखाया जाता है। यदि आप यहाँ के उन गिने-चुने बच्चों में हैं तो आपको तैरना नहीं सिखाना है। आप तैरकर सागर क्या, बड़े-बड़े भवसागर पार कर सकते हैं अैर मतवाले हाथी को भी मार सकते हैं। लेकिन आप अपने उस रूप को भूल गये हैं। इसीलिए धोबी के गदहे की तरह लादी-लादे जा रहे हैं आपपर और आप मुंगरी खाते जा रहे हैं। बर्दास्त करते जा रहे हैं। उस सिंह की तरह अपना स्वरूप तो देखो जो अपने स्वरूप को भूलकर धोबी की लादी ढो रहा था। उसने जल पीते समय पानी में जब अपना स्वरूप देखा तो कहा कि अरे! हम तो कुछ और ही हैं। स्वरूप का ज्ञान करके जब वह गर्जन किया तो धोबी कहीं भागा, गदहा कहीं भागे और सब लादी जाकर कहीं गिरा। जिस दिन तुम अपने पास शक्ति को अच्छे ढंग से रखोगे तो कौन से लोग और क्यों हाथ उठायेंगे? शासन द्वारा किसी तरह के प्रताड़ना को कोई प्रश्न ही नहीं उठ खड़ा होगा।
Sarweswary Samooh आपने तरुणों को आहार-बिहार के प्रति मात्रज्ञ होने तथा अदेह काम के काया प्रवेश के प्रति हमेशा सावधान रहने की प्रेरणा देते हुए एक सद्गृहस्थ बनने की प्रेरणा दें। खून की शु(ता को बनाये रखने की प्रेरणा देते हुए उसकी अशु(ता के होने वाले दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से बताया। इसके अतिरिक्त अनेकानेक व्यावहारिक बातें समूह सदस्यों तथा शिष्यों को बताते हुए पूज्य बाबा ने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर आप अपने विवेकानुसार रचनात्मक कार्य करें और केन्द्र के प्रति सम्मान रखें। समर्पित शिष्यों को अपने गुरु का नाम न लेकर पूज्य श्री, महाराजश्री से सम्बोधन करना चाहिए तथा गुरू की कसम कभी भी नहीं खानी चाहिए। इस संदर्भ में इस्लाम का उदाहरण देते हुए आपने बताया कि आप उनके मुँह से ‘अल्ला कसम’ तो सुने होंगे लेकिन मुहम्मद की कसम खाते कभी नहीं सुने होंगे, जो उनके गुरू थे। इसी प्रकार सत्यवादी ;पतिव्रताद्ध औरतों के मुँह से पति का नाम भी लेते हुए आपने कभी नहीं सुना होगा।
Sarweswary Samooh इसके बाद नागार्जुन के सशरीर एक द्वीप से दूसरे द्वीप में आकाश मार्ग से पहुँच जाने की विलक्षण शक्ति के संदर्भ में पूज्य बाबा ने बताया कि अघोरान्ना परोमन्त्रो’ जो कहा गया है इसके प्रभाव को भगवान शिव भी नहीं जानते हैं। इसको जो करने वाले हैं, वह कर लेते हैं। जिससे हो जाता है वह बहुत गम्भीर होते हैं। शीलवान होते हैं। उनमें शालीनता होती है। उनको आप पहचान नहीं पायेंगे। बाहर से वह ऐसा व्यवहार करते हुए दीखते हैं जैसे हम आपकी ही तरह हैं मगर भीतर से ;अभ्यंतर सेद्ध वह कुछ और ही हैं।
अंत में पूज्य अघोरेश्वर ने एक बार पुनः तरुणों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आपकी जो जोशीली तरुणाई है इसे किसी रचनात्मक कार्य में लगावें चाहे वह काम आपके घर का हो या गाँव, समाज, संस्था तथा राष्ट्र का हो। भले ही आपकी संख्या कम हो, आप ऐसे कार्य में जुट जायें। ज्यादा संख्या होने से प्रपंच बढ़ जाता है। कहा भी गया है। ‘‘बटुरा जोगी मठ उजार’’। कम लोग रहते हैं तो कम पर्यावरण होता है। अगर ज्यादा होंगे तो न विचार कर सकेंगे, न बात कर सकेंगे। बन्धुओं! आप अपने आचरण-व्यवहार, विचार तथा समझ के बल पर अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं। आप हैवान बनना चाहें तो हैवान बनें, शैतान बनना चाहें तो शैतान बनें, आदमी बनना चाहें तो आदमी बनें और देवता बनना चाहें तो देवता बनें। सबकुछ आप पर ही निर्भर करता है। आप यदि राम और बु( जैसे महापुरुषों की श्रेणी में जाना चाहें तो आप इनकी श्रेणी में जा सकते हैं। आप यह सब सोचकर निराश न हों कि आप गृहस्थ हैं और आपसे अब नहीं हो सकता। आप जैसे हजारोंझारों शिष्यों ने जो कुछ प्राप्त किया है उसे बड़े-बड़े साधु नहीं प्राप्त कर पाये। वैरागियों को भी दुर्लभ रह गई वह बात। उनके समझ में नहीं आयी। न समझ सके और न समझा सके। अन्धा-अन्धे को समझाता रहा। कौआ कान ले गया सुनकर कान न देख कर कौैए के पीछे दौड़ते रहे तो ऐसी परिस्थिति में हम कुछ नहीं कर सकते। आप अपने में ठहराव ;स्थिरताद्ध लायें और बर्दास्त करने की क्षमता विकसित करें। इन्हीं शब्दों के साथ आपमें बैठे उस अज्ञात को प्रणाम करता हूँ और आपसे विदा लेता हूँ। हर हर महादेव…Sarweswary Samoohhttp://anantsoch.com, https://www.youtube.com/watch?v=hIyE1rN1LKc

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