पेट एवं रोजगार के आगे कोई मजहब नहीं, महावीरी ध्वज बेचने वाले असगर ने कहा

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चंदन पाल की रिपोर्ट

धनबाद: पिछले तीस वर्षों से महावीरी ध्वज बना कर बिक्री कर रहे रांगाटांड़ के रहने वाले मोहम्मद असगर बताते हैं कि पेट के आगे कोई मजहब या धर्म नही होता है। यह हमारा रोजगार है। हम महावीर ध्वज में इतना आकर्षक साज- सज्जा करते हैं कि भक्तों को काफी पसंद आता है। भक्त भी किसी प्रकार का भेदभाव नही करते हैं। यह रोजगार पूर्वजों से ही चलता आ रहा है। यूं तो महावीर ध्वज की बिक्री सालों भर होती है लेकिन रामनवमी में इसकी बिक्री कई गुणा बढ़ जाती है। इस वजह से ध्वज बनाने वाले कारीगरों की व्यस्तता भी होली के बाद से बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि ध्वज बनाने में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों की आवक राजस्थान व गुजरात से होती है। कारीगरों को प्रति थान कपड़ा उपलब्ध कराया जाता है जिसे कारीगर ध्वज का आकार में काट कर उस पर गोटा व सितारा लगा इसका निर्माण करते हैं। इसके बाद राम जी और हनुमान जी की छपी आकृति को ध्वज में लगाकर सुंदर और आकर्षक रूप देते है। उन्होने बताया कि ध्वज की कीमत ₹ 30 से 2000 तक है। धनबाद , झरिया, फुसबंगला, डिगवाडीह, पाथरडीह, सुदामडीह ,जामाडोबा, सिंदरी, कतरास , गोविंदपुर ,निरसा आदि क्षेत्रों में इसकी बिक्री की जाती है।

वहीं ध्वजारोहण को लेकर छोटी से बड़ी आकृति वाले बांस की बिक्री कर रहे गोविंदपुर के रहने वाले बशीरूद्दीन अंसारी और एजाज अंसारी बताते हैं कि रोजी रोजगार में अगर मजहब देखा जाएगा तो खुद का और परिवार का भरणपोषण करना काफी मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि वह रामनवमी के अवसर पर जिले के विभिन्न क्षेत्रों के साथ साथ धनबाद के हीरापुर स्थित वर्षों से बांस बेचने का कार्य कर रहे हैं। 100 रुपये से 500 रुपये तक के बांस है। रामनवमी में बांस की अच्छी बिक्री होती है।

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